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आलेख दैनिक भास्कर से साभार
जबकि मार्केट वैल्यू करीब सौ करोड़। दिलचस्प बात यह है कि भारतीय बाजार में चाइना के उत्पादों की भरमार के बीच यह स्मार्ट कंट्रोल कंपनी एक ऐसी कंपनी है जो अपना प्रॉडक्ट चाइना को देती है। एमआईटीएस ग्वालियर से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त आशुतोष कहते हैं- मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं अपना प्रॉडक्ट चाइना को बेच रहा हूं।
चार लोगों का साथ, 50 हजार की पूंजी: घर में 200 वर्ग फीट का कमरा, 50 हजार रुपए की पूंजी और सहयोग के लिए चार लोगों का साथ। बस, इतने से संसाधन के साथ शुरू हुआ स्मार्ट कंट्रोल कंपनी प्रा.लि. का सफर, जो पावर कंट्रोल पैनल बनाती है। तब सालाना कारोबार था 20 से 25 लाख रुपए। आज तो कंपनी सीधे तौर पर सौ लोगों को रोजगार दे रही है। इनमें से 30 सदस्य ऐसे हैं जो 2007 से अब तक कंपनी के काम के सिलसिले में विदेश यात्रा करते रहते हैं। दरअसल 2007 से पहले तक कंपनी का कारोबार प्रदेश आैर देश तक ही सीमित था।
प्रॉडक्ट और प्रोजेक्ट: पावर कंट्रोल सिस्टम पैनल का निर्माण। देश की प्रमुख टायर निर्माता कंपनियों को सप्लाई। दिल्ली मेट्रो रेलवे का लगेज हैंडलिंग सिस्टम तैयार किया। चाइना में स्थापित अमेरिकी कंपनी फाइबर विजन को नॉन वीविंग लाइंस कंट्रोल सिस्टम दिया।
चाइना से चार लाख डालर का ऑर्डर: बीते वर्ष चाइना से एक लाख डालर का ऑर्डर मिला। इस वर्ष 4 लाख डालर की सप्लाई का ऑर्डर है। कंपनी का पचास फीसदी कारोबार देश के बाहर स्वीडन, डेनमार्क, जर्मनी, हालैंड, थाइलैंड, इंडोनेशिया और चाइना से होता है।
नौकरी के साथ शुरू हुआ सफर
1990 में एमआईटीएस ग्वालियर से बीई करने के बाद आशुतोष ने साल भर तक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का काम किया। इसके बाद मालनपुर में स्थापित एमपी आयरन में नौकरी। नौकरी ज्यादा रास नहीं आई तो 1995 में छोड़कर कंसल्टेंट हो गए।
आलेख दैनिक भास्कर से साभार
स्वामी विवेकानंद ने 122 साल पहले 1893 में शिकागो में अपनी प्रतिभा से विश्व को अचंभित कर दिया था। उनका जन्मदिवस 12 जनवरी ‘युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। मध्यप्रदेश के युवाओं में भी हौसलों की कोई कमी नहीं है। यहां भी नौजवानों की ऐसी कई टोलियां हैं, जो लीक से हटकर काम कर रही हैं। इन युवाओं ने हौसले के पंख पर सवार होकर अपने साथ राज्य और देश का नाम दुनिया में रोशन किया है। वो हैं ग्वालियर के आशुतोष चिंचोलीकर। जिन्होंने नौकरी छोड़ खुद का बिजनेस खोला और अब करोड़ों कमा रहे हैं।
सफलता की कहानी अनायास ही नहीं लिखी जाती। इसके लिए सपने देखने पड़ते हैं। सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। तभी सफलता मिलती है। जो दूसरों के लिए कहानी या प्रेरणा बनती है। ऐसी ही एक कहानी के नायक हैं आशुतोष चिंचोलीकर। 1999 में घर के ही ब-मुश्किल दो सौ वर्गफीट के कमरे में शुरू की गई इस कंपनी का वर्तमान में सालाना कारोबार 16 करोड़ रुपए का है।
जबकि मार्केट वैल्यू करीब सौ करोड़। दिलचस्प बात यह है कि भारतीय बाजार में चाइना के उत्पादों की भरमार के बीच यह स्मार्ट कंट्रोल कंपनी एक ऐसी कंपनी है जो अपना प्रॉडक्ट चाइना को देती है। एमआईटीएस ग्वालियर से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त आशुतोष कहते हैं- मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं अपना प्रॉडक्ट चाइना को बेच रहा हूं।
चार लोगों का साथ, 50 हजार की पूंजी: घर में 200 वर्ग फीट का कमरा, 50 हजार रुपए की पूंजी और सहयोग के लिए चार लोगों का साथ। बस, इतने से संसाधन के साथ शुरू हुआ स्मार्ट कंट्रोल कंपनी प्रा.लि. का सफर, जो पावर कंट्रोल पैनल बनाती है। तब सालाना कारोबार था 20 से 25 लाख रुपए। आज तो कंपनी सीधे तौर पर सौ लोगों को रोजगार दे रही है। इनमें से 30 सदस्य ऐसे हैं जो 2007 से अब तक कंपनी के काम के सिलसिले में विदेश यात्रा करते रहते हैं। दरअसल 2007 से पहले तक कंपनी का कारोबार प्रदेश आैर देश तक ही सीमित था।
प्रॉडक्ट और प्रोजेक्ट: पावर कंट्रोल सिस्टम पैनल का निर्माण। देश की प्रमुख टायर निर्माता कंपनियों को सप्लाई। दिल्ली मेट्रो रेलवे का लगेज हैंडलिंग सिस्टम तैयार किया। चाइना में स्थापित अमेरिकी कंपनी फाइबर विजन को नॉन वीविंग लाइंस कंट्रोल सिस्टम दिया।
चाइना से चार लाख डालर का ऑर्डर: बीते वर्ष चाइना से एक लाख डालर का ऑर्डर मिला। इस वर्ष 4 लाख डालर की सप्लाई का ऑर्डर है। कंपनी का पचास फीसदी कारोबार देश के बाहर स्वीडन, डेनमार्क, जर्मनी, हालैंड, थाइलैंड, इंडोनेशिया और चाइना से होता है।
नौकरी के साथ शुरू हुआ सफर
1990 में एमआईटीएस ग्वालियर से बीई करने के बाद आशुतोष ने साल भर तक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का काम किया। इसके बाद मालनपुर में स्थापित एमपी आयरन में नौकरी। नौकरी ज्यादा रास नहीं आई तो 1995 में छोड़कर कंसल्टेंट हो गए।
टाटा आयरन, जिंदल स्टील, जेके टायर जैसी कंपनियों से जुड़े। इसके बाद लगा कि नौकरी भले ही नहीं कर रहे हैं पर इधर-उधर तो भटकना ही पड़ता है। लिहाजा, खुद अपना ही कुछ क्यों न किया जाए। इसी सोच से शुरू हुई स्मार्ट कंट्रोल कंपनी।
बातचीत- सफलता और पहचान के लिए घर न छोड़ें
>आपका लक्ष्य ?
- समय के साथ बदलता रहा। पहला लक्ष्य था-ग्वालियर में ही रहना है। इसके बाद तय किया अपनी अलग पहचान हो। कंपनी शुरू की तो लक्ष्य तय किया एक सम्मानजनक टर्नओवर।
> इसके बाद क्या?
- अब लक्ष्य है अधिक से अधिक लोगों को रोजगार देना। शुरू में चार लोग जुड़े थे। आज सौ हैं। आगे चार सौ होंगे और ---। इंडस्ट्रियल ग्रोथ के बिना आप रोजगार के अवसर पैदा नहीं कर सकते, ऐसा मेरा मानना है।
> युवाओं के लिए कोई संदेश?
- अपना देश कभी न छोड़ें। हमारी प्रतिभा दूसरे देशों में पलायन कर रही है। इसी के चलते हम दूसरे देशों से पिछड़ रहे हैं। मेरा मानना है-हमारे यहां भी करने के लिए बहुत काम है। थोड़े से पैसों या स्वार्थ की खातिर देश छोड़ना गलत है।
बातचीत- सफलता और पहचान के लिए घर न छोड़ें
>आपका लक्ष्य ?
- समय के साथ बदलता रहा। पहला लक्ष्य था-ग्वालियर में ही रहना है। इसके बाद तय किया अपनी अलग पहचान हो। कंपनी शुरू की तो लक्ष्य तय किया एक सम्मानजनक टर्नओवर।
> इसके बाद क्या?
- अब लक्ष्य है अधिक से अधिक लोगों को रोजगार देना। शुरू में चार लोग जुड़े थे। आज सौ हैं। आगे चार सौ होंगे और ---। इंडस्ट्रियल ग्रोथ के बिना आप रोजगार के अवसर पैदा नहीं कर सकते, ऐसा मेरा मानना है।
> युवाओं के लिए कोई संदेश?
- अपना देश कभी न छोड़ें। हमारी प्रतिभा दूसरे देशों में पलायन कर रही है। इसी के चलते हम दूसरे देशों से पिछड़ रहे हैं। मेरा मानना है-हमारे यहां भी करने के लिए बहुत काम है। थोड़े से पैसों या स्वार्थ की खातिर देश छोड़ना गलत है।
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